सज गए अजाखाने, बिछ गई फर्श-ए-अजा-छा गया कर्बला के शहीदों का गम

चांद दिखते ही माह-ए-गम का आगाज हो गया है। पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मुहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन अलेहिस्सलाम का गम मनाने के लिए इमामबाड़ों व दरगाहों सहित अन्य स्थलों में फर्श-ए-अजा बिछा दी गई है। सवा दो महीना इमाम को अपना मेहमान बनाने के लिए शिया समुदाय के घरों में अजाखाने सजा दिए गए हैं। कर्बला के शहीदों को पुरसा देने को हर कोई आंसुओं के साथ इस्तकबाल-ए-अजा के लिए बेकरार है।

शनिवार को चांद दिखते ही पुराने शहर में हर जगह मजलिस-मातम की आवाज गूंजने लगी। खुशियों को भूल इमाम के अजादार सियाह लिबास पहन कर कर्बला के शहीदों के गम में डूब गए। कश्मीरी मुहल्ला, शाहगंज, बजाजा, सरफराजगंज, हुसैनाबाद व नूरबाड़ी सहित अन्य इलाकों में अजादारों ने अपने घरों की छतों पर काले झंडे लगा दिए हैं। मुहर्रम के शुरू होते ही विक्टोरिया स्ट्रीट में रविवार से सिलसिलेवार मजलिसों का दौर भी शुरू हो जाएगा। पहली से नवीं मुहर्रम तक चलने वाली इन मजलिसों में हजारों अजादार शामिल होंगे। नंगे-पांव एक से दूसरी मजलिस में शामिल होकर अजादार सुबह से शाम तक इमाम के गम में आंसुओं का नजराना पेश करेंगे। इमामबाड़ों के अलावा घरों में भी फर्श-ए-अजा बिछाकर रोजाना मजलिस होगी।

शाही मोम की जरीह का जुलूस आज : पहली मुहर्रम यानी रविवार को बड़े इमामबाड़े से शाही जरीह का जुलूस निकाला जाएगा। शाम चार बजे इमामबाड़ा परिसर में मौलाना मुहम्मद अली हैदर मजलिस को खिताब करेंगे। मजलिस के बाद इमामबाड़ा गेट से जुलूस के निकलने का सिलसिला शुरू हो जाएगा। जुलूस अपने शाही अंदाज में सजे हाथी, ऊंट के संग रूमी दरवाजा व घंटाघर होता हुआ छोटे इमामबाड़े पर खत्म होगा। जुलूस में शाही निशान, माही मरातब, रोशन चौक के अलावा पीएसी सहित कई बैंड मातमी धुन बजाते चलेंगे। सबसे आगे शहनाई पर नौहे की धुन बजेगी, तो वहीं सबसे पीछे चार क्विंटल की शाही मोम की जरीह व अबरक का ताजिया होगा, जिसको दर्जनों लोग बांस की बल्लियों के सहारे लेकर चलेंगे। इन शबीह-ए-मुबारकी जियारत कर अजादार नम आंखों के साथ मातम करते हुए जुलूस के साथ-साथ चलेंगे।

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