अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड की मौत का अमेरिका के कई शहरों में हो रहा विरोध प्रदर्शन
अमेरिका के मिनियापोलिस में श्वेत पुलिस अधिकारी द्वारा अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड की घुटने से गला दबाकर की गई हत्या के खिलाफ शुरू हुआ विरोध अब पूरी दुनिया में फैल गया है. सिडनी से लेकर पेरिस तक इस घटना के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं. यूरोपीय संघ (ईयू) के शीर्ष राजनयिक ने कहा कि ईयू इस घटना से ‘स्तब्ध और हैरान’ है. वहीं ऑस्ट्रेलिया के सबसे बड़े शहर में हजारों लोगों ने मार्च निकाला.
ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में मंगलवार को करीब तीन हजार लोगों ने शांतिपूर्ण मार्च निकाला और नस्लीय संबंधों में मौलिक बदलाव की मांग की. इस दौरान उन्होंने ‘अश्वेतों का जीवन मायने रखता है’ और ‘मैं सांस नहीं ले सकता’ जैसे नारे लगाए.
फ्रांस में भी हुई थी अश्वेत व्यक्ति की मौत
फ्रांस की राजधानी पेरिस और देश के अन्य हिस्सों में मंगलवार शाम को विरोध प्रदर्शन हुआ. प्रदर्शन का आह्वान साल 2016 में पुलिस हिरासत में लिए जाने के कुछ समय बाद ही मृत मिले अश्वेत व्यक्ति अडामा ट्रैओरे के परिवार ने किया है. नीदरलैंड के हेग में भी विरोध प्रदर्शन की योजना है.
फ्लॉयड की अमेरिका के मिनियापोलिस में पिछले हफ्ते उस समय मौत हो गई थी जब एक श्वेत पुलिस अधिकारी ने उसके गले को अपने घुटने से तबतक दबाए रखा जबतक कि उसकी सांसे नहीं टूट गई. उसकी मौत के बाद पूरे अमेरिका में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया.
EU ने कहा- हम स्तब्ध और हैरान
यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख जोसेप बोरेल ने संगठन की ओर से अबतक सबसे तीखी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि ‘फ्लॉयड की मौत अधिकार के दुरुपयोग का नतीजा है. अमेरिका के लोगों की तरह हम भी फ्लॉयड की मौत से स्तब्ध और हैरान हैं.’
जोसेप बोरेल ने कहा, यूरोपीय शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकार का समर्थन करते हैं और साथ ही किसी भी तरह की हिंसा और नस्लवाद का विरोध करते हैं. उन्होंने कहा कि हम निश्चित तौर पर तनाव कम करने की अपील करते हैं. पूरी दुनिया में प्रदर्शनकारी फ्लॉयड की मौत के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे अमेरिकियों के प्रति एकजुटता प्रकट कर रहे हैं.
ऑस्ट्रेलिया में पुलिस के रवैये में बदलाव की मांग
सिडनी में अधिकतर प्रदर्शन करने वाले ऑस्ट्रेलिया थे लेकिन इनमें अमेरिकी और अन्य देशों के लोग भी शामिल हुए. दो घंटे के प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों ने पुलिस सुरक्षा में करीब एक किलोमीटर लंबा मार्च निकाला.
प्रदर्शन में शामिल कई लोगों ने कहा कि अमेरिकी अफ्रीकी लोगों कें प्रति सहानुभूति से प्रेरित होकर वे इस प्रदर्शन में शामिल हुए हैं लेकिन जल्द ही प्रदर्शनकारियों ने ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के प्रति अपनाए जा रहे रवैये में बदलाव की मांग की, खासतौर पर पुलिस के रवैये में.
दरअसल, सिडनी की जेल में 2015 में ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी 26 वर्षीय डेविड दुंगे की मौत हो गई थी. यह घटना उस समय हुई जब पांच सुरक्षा गार्ड ने उसे पकड़ा था और डुंगे के अंतिम शब्द थे कि ‘मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं’.
ऑस्ट्रेलिया में सर्वोच्च आधिकारिक जांच रॉयल कमीशन की रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि 1991 से अबतक 432 आदिवासी ऑस्ट्रेलियाई लोगों की पुलिस हिरासत में मौत हुई है. सिडनी में शनिवार को भी बड़े पैमाने पर प्रदर्शन करने की योजना है.
दुनिया का इस मुद्दे पर क्या कहना है
सोमवार को भी यूरोप के एम्स्टर्डम में हजारों लोगों ने पुलिस की क्रूरता के खिलाफ प्रदर्शन किया था. स्पेन के बार्सिलोना में भी एक हजार लोगों ने अमेरिका के वाणिज्य दूतावास के सामने शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया. जर्मनी के विदेशमंत्री हीको मास ने मंगलवार को कहा कि अमेरिका में फ्लॉयड की मौत के बाद शांतिपूर्ण प्रदर्शन को समझा जा सकता है और यह कहीं अधिक वैध है. उन्होंने कहा, ‘‘मैं केवल यह उम्मीद कर सकता हूं कि चल रहा शांतिपूर्ण प्रदर्शन हिंसक नहीं हो लेकिन इससे ज्यादा उम्मीद यह करता हूं कि इस प्रदर्शनों का असर अमेरिका पर पड़े.’’
इस बीच, फ्लॉयड की हत्या अब अफ्रीकी नेता भी मुखर हो रहे हैं. घाना के राष्ट्रपति नाना अकुफो अददो ने कहा, ‘‘यह सही नहीं है कि 21 सदीं में अमेरिका, जो लोकतंत्र का मशाल धारक है, व्यवस्थागत नस्लवाद में जकड़ा रहे.’’ उन्होंने कहा कि इस घटना से पूरी दुनिया के अश्चेत स्तब्ध और व्याकुल हैं. केन्या के विपक्षी नेता और पूर्व प्रधानमंत्री पिनिस्टर राइला ओडिंगा ने अमेरिका के लिए प्रार्थना करते हुए कहा, ‘‘जो अमेरिका को अपना देश कहते हैं वहां पर सभी इंसानों के लिए न्याय और आजादी हो.’’
ओडिंगा ने अपने देश की समस्या को भी रेखांकित करते हुए कहा कि लोगों का आकलन त्वचा के रंग के बजाय चरित्र के आधार पर हो अफ्रीका में भी हमारा यही सपना है. दक्षिण अफ्रीका के वित्तमंत्री टीटो मोबोवेनी ने वर्षों पहले रणनीति के तहत अश्वेतों की हत्या के खिलाफ अमेरिकी दूतावास के सामने हुए एक प्रदर्शन को याद किया. उन्होंने बताया, ‘‘उस समय तत्कालीन अमेरिकी राजदूत पैट्रिक गैसपर्ड ने मुझे अपने कार्यालय में आमंत्रित किया और बताया कि जो आप देख रहे हैं स्थिति उससे कहीं अधिक बद्तर है.’’